सन १९७० में नदीओल दरवाजा
अंतत: जैन धर्म बना रहा और बौध धर्म लुप्त हो गया।


यहां जैन धर्म पहला-फूला। जैन मुनि भद्रबाहु ने विख्यात ग्रंथ "कल्पसूत्र" इस धरती पर लिखा।


नगर के जैन मंदिर की प्रतिमा

**********ताना-रीरी की कहानी

दक्षिण-पूर्व से दिखता मन्दिर
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पूर्व दिशा का द्वार
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मन्दिर का पूर्वाभिमुख भाग
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शिखर
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बाहरी दीवार का एक कोना
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समुद्रमंथन
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विश्वकर्मा
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बाहर की दीवार का एक हिस्सा
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महाभारत का एक द्रश्य - वृक्ष पर से कौरवों को गिराता भीम
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एक आकृति
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गान्धर्व
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विश्वकर्मा नर्तकियां के साथ

संध्या का समय
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स्तम्भ पर का बारीकी शिल्प
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दुसरे तोरण का उपर का हिस्सा।
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पश्चिम की ओर से दृश्य।
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पुन: जोड़ा गया दुसरा तोरण और उसके पीछे दिखता पहला तोरण।
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सन २००६ में पहले तोरण के पीछे पुन:निर्माणाधीन दुसरा तोरण।
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करीब एक सौ साल पहले दुसरा तोरण, जो कि दो तोरण में ज्यादा सुंदर है, वडोदरा के तत्कालिन महाराजा सयाजी राव के आदेश पर वडोदरा ले जाने के लिए नीचे उतार दिया गया था। जब वडनगर के लोगों ने इस का डट कर विरोध किया, तो यह योजना छोड़ दी गई। लेकिन, यह तोरण के नीचे उतार दिए गए अलग अलग हिस्से पहले तोरण के नजदीक वैसे ही छोड़ दिए गए। समय के जाते इस तोरण के उपर के हिस्से की कई सुंदर प्रतिमाए चोरी हो गई। सन २००७ में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ऐ. एस. आई.) ने इस तोरण का पुन:निर्माण किया। अब पुन: खडा किया गया यह तोरण अभूतपूर्व दृश्य पेश करता है।


तोरण के दाहिने स्तम्भ का बारीकी शिल्प।
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सन २००७ में दुसरा तोरण पुरी तरह पुन: जोड़ा गयाध्यान से देखें कि तोरण के दोनों स्तम्भ के ऊपर के हिस्से से १६ प्रतिमा के शिल्प गायब हैइन शिल्पों को ले कर तोरण की भव्यता ओर बढ़ जाती

दुसरे तोरण के अलग किए गए विभिन्न भाग पहले तोरण के नजदीक रखे हुए।

उषाकाल में तोरण का द्रश्य स्वप्नलोक सी अनुभूति कराता है।
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